सु-जोक चिकित्सा पद्धति
स्व-उपचार की सरल चिकित्सा
दवाओं का विकल्प बन सकती है सुजोक चिकित्सा सु-जोक शब्द KOREAN भाषा से संबंधित है। यह दो शब्दों के योग से मिलकर बना है सु+जोक। सु का अर्थ है हाथ तथा जोक का अर्थ है पैर। सु-जोक एक्युप्रेशर स्व- UPCHAR की एक अत्यन्त सहज एवं सरल चिकित्सा विधि है।
इसमें हाथों एवं पैरों के निश्चित बिन्दुओं पर दबाव देकर उपचार किया जाता है। मनुष्य के तन तथा मन दोनों की साधारण एवं गंभीर बीमारियों का उपचार सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
कोरिया के चिकित्सक सर पार्क जे.वू. ने इस चिकित्सा पद्धति का अविष्कार दो दशकों के चिंतन के दौरान किया। हाथ एवं पाँव के तलवों में सिर से पाँव तक शरीर के तीन भाग सिर, धड़ तथा पाँव को स्थापित किया गया है।
सिद्धांत
SU JOK द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में अवरुद्ध चेतना का न केवल संचार होता है, अपितु शरीर के विभिन्न भागों की ऊर्जा के असंतुलन को दूर कर रोगों का निवारण होता है। ऊर्जा चिकित्सा के अंतर्गत रोग की स्थिति ऊर्जा प्रवाह के मार्ग में अवरोध पर निर्भर होती है अथवा शरीर को निश्चित मात्रा में ऊर्जा का न मिलना रोग उत्पन्न करता है।
यह माना गया है कि रोग की अवस्था में मुख्य ऊर्जा मार्ग, जिन्हें हम मेरेडियन भी कहते हैं, में बाधा स्वरूप क्रिस्टल जमा हो जाते हैं। एक्युप्रेशर सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा मार्ग में उत्पन्न अवरोध या क्रिस्टल को दबाव द्वारा तोड़ा या हटाया जाता है। शरीर में 14 मुख्य मेरेडियन, जिन्हें ऊर्जा प्रवाह वाहिकाएं कहा जाता है, होती हैं, जिनमें सात शरीर के अग्र भाग में तथा सात वाहिकाएँ शरीर के पृष्ठ भाग पर स्थापित हैं।
इन्हीं मेरेडियन के माध्यम से शरीर जीवनोपयोगी आवश्यक ऊर्जा ब्रह्मांड से ग्रहण करता है। इस चेतना शक्ति को विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से संबोधित किया गया है। भारत में इसे प्राण, आत्मा, जीव एवं प्राण-शक्ति कहते हैं। पाश्चात्य देशों में इसे यूनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी, कॉस्मिक एनर्जी तथा चीन और जापान में 'ची', 'की' एवं शिआत्सु नाम से जाना जाता है।